अनुक्रम
#1: भाग-1 : धर्म नहीं है धर्मो में
प्रवचन 1: धर्मोँ की मृत चट्टानेँ :धार्मिकता की बह्ती सरिता
प्रवचन 2: मन की बचकानी माँगोँ को धर्मोँ ने पकडाए खिलौने
प्रवचन 3: ईश्वर और शैतान:बिलकुल सटिक जोडी
प्रवचन 4: काल्पनिक समस्या: कल्पित समाधान
प्रवचन 5: ईश्वर:विकलाँग मानसिकता के लिए एक झठी बैसाखी
प्रवचन 6: स्वार्थ के बीज: परार्थ के फूल
प्रवचन 7: देह और आत्मा के बीच चीन की दिवार
प्रवचन 8: तथाकथित प्रार्थनाएँ: ईश्वर के नाम सलाहेँ व शिकायतेँ
प्रवचन 9: मैँ जागरण सिखाता हूँ, आचरण नहीँ
प्रवचन 10: मैँ रूपाँतरण सिखाता हूँ, दमन नहीँ
प्रवचन 11: विकृतियोँ का मूलस्त्रोत: अप्राकृतिक काम-दमन
प्रवचन 12: धर्मोँ की सँगठित अपराध-व्यवस्था
प्रवचन 13: मैँ आत्मग्यान सिखाता हूँ, अनुशासन नहीँ
#2: भाग-2 : धार्मिकता अर्थात जीवन की कला : होश और हास्य, आनँद-अहोभाव-महोत्सव
प्रवचन 1: ईदन के उधान मेँ पुन:प्रवेश
प्रवचन 2: मैँ आह्लाद सिखाता हूँ, विषाद नहीँ
प्रवचन 3: मैँ जीवन-प्रेम सिखाता हूँ, मृत्यु-पूजा नहीँ
प्रवचन 4: ध्यान की आबोहवा: प्रेम के फूल
प्रवचन 5: हास्य मेँ भगवत्ता की झलक
प्रवचन 6: जागो और मुक्त हो जाओ
प्रवचन 7: एकाग्रता:मन का अनुशासन, ध्यान:मन का विसर्जन
प्रवचन 8: सँबोधि तुम्हारा स्वभाव है
प्रवचन 9: मौन का रसास्वादन: धार्मिकता की अनुभूति
Main Dharmikta Sikhata Hoon Dharm Nahin
“मेरी दृष्टि में तो धर्म एक गुण है, गुणवत्ता है; कोई संगठन नहीं, संप्रदाय नहीं। ये सारे धर्म जो दुनिया में हैं—और उनकी संख्या कम नहीं है, पृथ्वी पर कोई तीन सौ धर्म हैं—वे सब मुर्दा चट्टानें हैं। वे बहते नहीं, वे बदलते नहीं, वे समय के साथ-साथ चलते नहीं। और स्मरण रहे कि कोई चीज जो स्वयं निष्प्राण है, तुम्हारे किसी काम आने वाली नहीं। हां, अगर तुम उनसे अपनी कब्र ही निर्मित करना चाहो तो अलग बात है, शायद फिर वे पत्थर उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। धार्मिकता तुम्हारे हृदय की खिलावट है। वह तो स्वयं की आत्मा के, अपनी ही सत्ता के केंद्र बिंदु तक पहुंचने का नाम है। और जिस क्षण तुम अपने अस्तित्व के ठीक केंद्र पर पहुंच जाते हो, उस क्षण सौंदर्य का, आनंद का, शांति का और आलोक का विस्फोट होता है। तुम एक सर्वथा भिन्न व्यक्ति होने लगते हो। तुम्हारे जीवन में जो अंधेरा था वह तिरोहित हो जाता है, और जो भी गलत था वह विदा हो जाता है। फिर तुम जो भी करते हो वह परम सजगता और पूर्ण समग्रता के साथ होता है।”—ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: वास्तविक धर्म क्या है? क्या मनुष्य को धर्म की आवश्यता है? सभी धर्म कामवासना के विरोध में क्यों हैं? आज मनुष्य इतना विषाद में क्यों है? जीवन का उद्देश्य क्या है?
Rs.340.00
Weight | .350 kg |
---|---|
Dimensions | 8.66 × 7.25 × 1.57 in |
AUTHOR: OSHO
PUBLISHER: Osho Media International
LANGUAGE: Hindi
ISBN: 9788172610494
PAGES: 136
COVER: PB
WEIGHT :350 GM
Based on 0 reviews
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
There are no reviews yet.