Mister BA | मिस्टर बी.ए.
R. K Narayan
आर.के. नारायण भारत के पहले ऐसे लेखक थे जिनके अंग्रेज़ी लेखन को विश्वभर में प्रसिद्धि मिली। अपनी रचनाओं के लिए रोचक कथानक चुनने और फिर उसे शालीन हास्य में पिरोने के कारण वे न जाने कितने ही पुस्तक प्रेमियों के पसंदीदा लेखक बन गए। इस उपन्यास की कहानी चंद्रन नाम के एक युवक के इर्द-गिर्द घूमती है जिसने बी.ए. पास कर लिया है और जिसे यह तय करना है कि जीवन में आगे क्या किया जाए। एक ओर उसके सामने अच्छी नौकरी कर अपना भविष्य संवारने का सवाल है तो दूसरी ओर अपने प्रेम को पाने की तड़प। दिलचस्प विषय के साथ ही किरदारों के जीवंत चित्रण और जगह-जगह हास्य के तड़के से यह उपन्यास बहुत रोचक बन गया है।
Rs.225.00
Mister BA | मिस्टर बी.ए.
R. K Narayan
Weight | .170 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
AUTHOR : R. K Narayan
PUBLISHER : Rajpal and Sons
LANGUAGE : Hindi
ISBN :9788170289111
BINDING : (PB)
PAGES : 136
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भारतीय क्रांतिकारी इतिहास में स्वातंत्रवीर विनायकदामोदर सावरकर का व्यक्तित्व अप्रतिम गुणों का द्योतक है। ‘सावरकर’ शब्द ही अपने आपमें पराक्रम, शौर्य औरउत्कट देशभक्ति का पर्याय है। अपनी आत्मकथा मेरा आजीवन कारावास में उन्होंने जेल-जीवन की भीषण यातनाओं- ब्रिटिश सरकार द्वारा दो-दो आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद अपनी मानसिक स्थिति, भारत की विभिन्न जेलों में भोगी गई यातनाओं और अपमान, फिर अंडमान भेजे जाने पर जहाज पर कैदियों की यातनामय नारकीय स्थिति, कालापानी पहुँचने पर सेलुलर जेल की विषम स्थितियों, वहाँ के जेलर बारी का कूरतम व्यवहार, छोटी-छोटी गलतियों पर दी जानेवाली अमानवीय शारीरिक यातनाएँ यथा-कोडे लगाना, बेंत से पिटाई करना, दंडी-बेड़ी लगाकर उलटा लटका देना आदि का वर्णन मन को उद्वेलित करदेनेवाला है। विषम परिस्थितियों में भी कैदियों में देशभक्ति और एकता की भावना कैसे भरी, अनपढ़ कैदियों को पड़ाने का अभियान कैसे चलाया, किस प्रकार दूसरे रचनात्मक कार्यो को जारी रखा तथा अपनी दृढ़ता और दूरदर्शिता से जेल के वातावरण को कैसे बदल डाला, कैसे उन्होंने अपनी खुफिया गतिविधियों चलाई आदि का सच्चा इतिहास वर्णित है।
इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक प्रसंग, जिनको पढ़कर पाठकउत्तेजित और रोमांचित हुए बिना न रहेंगे। विपरीत-से-विपरीत परिस्थिति में भी कुछ अच्छा करने की प्रेरणा प्राप्त करते हुए आप उनके प्रति श्रद्धानत हुएबिनान रहेंगे।
This book is an account of how Dr. Kalam visualizes Information and Communication Technology mining the rural talent. Here, Dr. Kalam presents his dream of schools in India at 2020 as symbiotic nerve centres connecting teachers, students and community; personifying knowledge that exists in the world. He also makes a clarion call to accelerate the process of societal transformation. This would involve raising the standards of governance and safeguarding the sanctity of public institutions. The book uses the metaphor of a tree to describe the process of knowledge bearing fruits of prosperity in the contemporary globalised world where different phases, formative, adult working life, and post-50 experienced senior citizens, call for different kinds of learning. The book refers to a contextual contribution of a large number of Indian scientists and artists and proves that there is no age bar to blossom. He advocates creation of conditions that favour growth of diverse individual talents akin to a garden and calls for a scientific mind-set guided by conscience, consensus and by actions that take our social and moral values into account in building our own systems.
विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ आध्यात्मिक विभूति थे। सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया।
राजयोग-विद्या इस सत्य को प्राप्त करने के लिए, मानव के समक्ष यथार्थ, व्यावहारिक और साधनोपयोगी वैज्ञानिक प्रणाली रखने का प्रस्ताव करती है। पहले तो प्रत्येक विद्या के अनुसंधान और साधन की प्रणाली पृथक्-पृथक् है। यदि तुम खगोलशास्त्री होने की इच्छा करो और बैठे-बैठे केवल ‘खगोलशास्त्र खगोलशास्त्र’ कहकर चिल्लाते रहो, तो तुम कभी खगोलशास्त्र के अधिकारी न हो सकोगे। रसायनशास्त्र के संबंध में भी ऐसा ही है; उसमें भी एक निर्दिष्ट प्रणाली का अनुसरण करना होगा; प्रयोगशाला में जाकर विभिन्न द्रव्यादि लेने होंगे, उनको एकत्र करना होगा, उन्हें उचित अनुपात में मिलाना होगा, फिर उनको लेकर उनकी परीक्षा करनी होगी, तब कहीं तुम रसायनविज्ञ हो सकोगे। यदि तुम खगोलशास्त्रज्ञ होना चाहते हो, तो तुम्हें वेधशाला में जाकर दूरबीन की सहायता से तारों और ग्रहों का पर्यवेक्षण करके उनके विषय में आलोचना करनी होगी, तभी तुम खगोलशास्त्रज्ञ हो सकोगे।
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