Vrindavan Lal Verma
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ‘ ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ‘, बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्टि प्रदान की ।आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ‘ पद्म भूषण ‘ की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ‘ सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ‘ से भी सम्मानित किया गया तथा ‘ झाँसी की रानी ‘ पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ‘ झाँसी की रानी ‘ तथा ‘ मृगनयनी ‘ का फिल्मांकन भी हो चुका है ।
Prabhat Prakashan, उपन्यास
Mrignayani
मानसिंह ने नाहर का बारीकी के साथ निरीक्षण किया। नाहर ने केवल एक तीर खाया था। राजा ने पूछा ‘नाहर की गरदन पर किसका तीर बैठा?’
निन्नी ने सिर झुका लिया। लाखी ने तुरंत सामने होकर उत्तर दिया, ‘निन्नी—मृगनयनी का।’
राजा ने दूसरा प्रश्न किया, ‘अरने के माथे पर बरछी किसकी खोंसी हुई है?’
लाखी बोली, ‘मृगनयनी की।’
‘वाह! धन्य हो!! तुम दोनों धन्य हो!!!’ मानसिंह के मुँह से निकला और उसने अपने गले से सोने का रत्नजडि़त हार निकालकर निन्नी के गले में डाल दिया।
Rs.600.00
Weight | .600 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
Author – Vrindavan Lal Verma
ISBN – 9789351867975
Language – Hindi
pages – 320
Binding: Hardcover
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