AUTHOR :Premchand
PUBLISHER : Prabhat Prakashan
LANGUAGE : Hindi
ISBN : 9789384344108
BINDING :HardCover
PAGES : 144
Weight | .350 kg |
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Dimensions | 7.50 × 5.57 × 1.57 in |
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0 out of 5(0)विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ आध्यात्मिक विभूति थे। सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया।
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0 out of 5(0)‘लौह पुरुष’ के नाम से विख्यात सरदार पटेल को भारत के गृह मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर के संवेदनशील मामले को सुलझाने में कई गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनका मानना था कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र में ले जाने से पहले ही इस मामले को भारत के हित में सुलझाया जा सकता था।
हैदराबाद रियासत के संबंध में सरदार पटले समझौते के लिए भी तैयार नहीं थे। बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के आग्रह पर ही वह 20 नवंबर, 1947 को निजाम द्वारा बाह्य मामले तथा रक्षा एवं संचार मामले भारत सरकार को सौंपे जाने की बात पर सहमत हुए। हैदराबाद के भारत में विलय के प्रस्ताव को निजाम द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने पर अंततः वहाँ सैनिक अभियान का नेतृत्व करने के लिए सरदार पटेल ने जनरल जे.एन. चौधरी को नियुक्त करते हुए शीघ्रातिशीघ्र काररवाई पूरी करने का निर्देश दिया। अंततः 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सैनिक हैदराबाद पहुँच गए और सप्ताह भर में ही हैदराबाद का भारत में विधिवत् विलय कर लिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक में कश्मीर और हैदराबाद के भारत में विलय की राह में आई कठिनाइयों और उन्हें दूर करने में सरदार पटेल की अदम्य इच्छाशक्ति पर प्रामाणिक ढंग से प्रकाश डाला गया है।SKU: n/a -
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0 out of 5(0)स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री और ‘लौह पुरुष’ की उपाधि प्राप्त सरदार पटेल कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य थे। पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वतंत्रता आदोलन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । उनके संपूर्ण राजनीतिक जीवन में भारत की महानता और एकता ही उनका मार्गदर्शक सितारा रहा। सरदार पटेल दो समुदायों के बीच आंतरिक मतभेद उत्पन्न करके ‘बाँटो और राज करो’ की ब्रिटिश नीति के कट्टर आलोचक थे।
भारत की एकता को बनाए रखना उनकी सबसे बड़ी चिंता थी। लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून, 1947 को अपनी योजना घोषित की। इसमें बँटवारे के सिद्धांत को स्वीकृति दी गई। इस योजना को कांग्रेस और मुसलिम लीग ने स्वीकार किया। सरदार पटेल ने कहा कि उन्होंने विभाजन के लिए सहमति इसलिए दी, क्योंकि वह विश्वसनीय रूप से समझते थे कि ‘(शेष) भारत को संयुक्त रखने के लिए इसे अब विभाजित कर दिया जाना चाहिए। ‘
सरदार पटेल के विस्तृत पत्राचार के आधार पर प्रस्तुत पुस्तक में भारत विभाजन किन परिस्थितियों में और किन-किन कारणों से हुआ, भारतीय नेताओं की मनःस्थिति तथा तत्कालीन समाज की मन :स्थिति का साक्ष्यों के प्रकाश में विस्तृत वर्णन किया गया है । भारत विभाजन के काले अध्याय का सप्रमाण इतिहास वर्णित करती एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक।SKU: n/a
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