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KANHAIYALAL MANIKLAL MUNSHI
इतिहास और संस्कृति के परम विद्वान और महान साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने गुजरात के मध्यकालीन इतिहास का सबसे स्वर्णिम अध्याय ‘राजाधिराज’ में रूपायित किया है। कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी इतिहास और संस्कृति के प्रसिद्ध विद्वान और गुजराती के प्रख्यात उपन्यासकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का जन्म 29 दिसम्बर, 1887 को गुजरात के भणौच नगर में हुआ। उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा प्राप्त की और वकालत के जरिये सक्रिय जीवन में उतरे। किन्तु उनकी रुचियों और सक्रियताओं का विस्तार व्यापक था। एक ओर इतिहास और संस्कृति का विशद अध्ययन और उनमें अकादमिक हस्तक्षेप, दूसरी ओर गुजराती साहित्य की समृद्धि में योगदान। श्री मुंशी ने देश के राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन में भागीदारी की और 1947 के उपरान्त स्वाधीन देश की सरकार में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। लेकिन उनकी बुनियादी रुचियाँ साहित्य-सृजन और सांस्कृतिक पुनरुत्थान से जुड़ी थीं। उन्होंने स्वभाषा में प्राचीन आर्य संस्कृति और गुजरात के इतिहास व लोकजीवन को केन्द्र में रखकर प्रभूत कथा-साहित्य रचा, तो अंग्रेजी में भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की। हिन्दी में भी उनकी अच्छी गति थी। उन्होंने ‘यंग इंडिया’ के सम्पादन में महात्मा गाँधी का हाथ बँटाया, तो प्रेमचन्द द्वारा प्रवर्तित ‘हंस’ के सम्पादक मंडल में भी रहे। प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और इंडोलोजी के विधिवत अध्ययन-संवर्धन के लिए भारतीय विद्या भवन’ नामक शोध संस्थान की उन्होंने स्थापना की और उसकी ओर से प्रकाशित अंग्रेजी पत्रिका ‘भवन्स जर्नल’ के संस्थापक सम्पादक रहे। मुंशी जी की कृतियों में ‘गुजरात गाथा’ नामक प्रस्तुत उपन्यासमाला के अलावा, श्रीमद्भागवत पर आधारित उपन्यास-शृंखला का अन्यतम स्थान है। गुजरात के प्राचीन इतिहास पर ‘ग्लोरी दैट वाज़ गुजरात’ नाम से एक ग्रन्थ उन्होंने अंग्रेजी में भी लिखा । श्री मुंशी मानवतावाद और आर्य संस्कृति के प्रबल पक्षधर थे।
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