Arunima Sharma
मुजफ्फरपुर के खबड़ा ग्राम की मूल निवासिनी डॉ. अरुणिमा शर्मा यों तो मूलतः विज्ञान की छात्रा रही हैं, पर कुछ जिंदगी के थपेड़ों ने, कुछ इनके जीवन के खालीपन ने इन्हें स्वाभाविक रूप से भावुक बना दिया है, जो कभी गद्य तो कभी पद्य के रूप में प्रस्फुटित होता रहता है। अपने व्यस्ततम जीवन से ये एक लम्हा लेखन रूपी पेड़ को सींचने के लिए अवश्य ही निकाल लेती हैं।
इनके काव्य में आप एक तरफ प्रकृति की निश्छलता, नदी का-सा प्रवाह पाएँगे तो वहीं दूसरी ओर जीवन दर्शन को बहुत संजीदगी से अनुभूत करेंगे। अरुणिमाजी के व्यक्तित्व की खासियत यह है कि इनका हृदय बच्चों-सा कोमल है, जिसपर छल-कपट का लेशमात्र भी अंश नहीं है एवं अपनी इसी वैचारिक सहजता और उदारता के कारण यह काफी लोकप्रिय हैं। इनकी कविताओं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनमें नारी की सभी भावनाओं का उत्कृष्ट एवं मार्मिक चित्रण होता है, वहीं दूसरी ओर ये पुरुष हृदय में उठनेवाले झंझावातों को भी छूती नजर आती हैं। ईश्वरप्रेम, प्रकृतिप्रेम, पर्यावरण संतुलन, जीवनदर्शन एवं अन्य सामयिक घटनाओं का चित्रण तो इनकी कविता के मूल अंश हैं ही। यह मानती हैं कि सृजन करने से मनुष्य थकता नहीं, वरन् उसमें प्राणवायु का संचार लयबद्ध ढंग से कायम रहता है। अतएव सृजन करते रहना चाहिए।
Pushpanjali
साधारण भाषा में कहें तो पाँच वि, यानी विरह, विछोह, विराग, विद्रोह या वियोगावस्था में मन की भावनाएँ जब लयबद्ध होकर प्रस्फुटित होती हैं तो कविता अवतरित होती है। प्रतिदिन के ऊहापोह वाली दिनचर्या में मुझे इतनी फुरसत तो नहीं मिलती कि मैं कुछ लिखूँ या पढ़ूँ, पर जब भी ज्यादा एकाकीपन महसूस होता है या मन खुश होता है तो उन भावनाओं को मैं अवश्य ही शब्दों का जामा पहना देती हूँ। तब ‘वक्त के आईने में जिंदगी’, ‘कौन आया था’, ‘आत्मचिंतन’ जैसी गूढ़ एवं दार्शनिकता से भरी कविताओं की रचना होती है।
मेरी कुछ कविताएँ, जैसे ‘पेड़ लगाओ, शहर बचाओ’, ‘पनिहारिन’, ‘छात्र या बेटियाँ’ किसी के आग्रह पर लिखी गई हैं। इसी तरह ‘गरमी का मौसम’, ‘समय’, ‘कुछ लिखने को है’, ‘घना कोहरा’, ‘तुम आ जाओ’, ‘फेसबुक’, ‘कश्मीर’, ‘वक्त नहीं है’, ‘सहयात्री एवं झाँसी की रानी’ इत्यादि की रचना भी परिस्थितिजन्य हुई है। ‘गंगा’ तो गंगा की उद्दाम और शांत लहरों को देखकर लिखी गई है। यह छोटी सी भूमिका है मेरी पुष्पांजलि की विभिन्न कडि़यों की, लेकिन मेरी अपने सुधी पाठकों से विनम्र आग्रह है कि वे मेरे एक-एक पुष्प के मकरंद का रसास्वादन यह जानते हुए करें कि लेखिका न तो साहित्य की प्राध्यापिका है और न ही उसमें पी-एच.डी.। मैं मूलतः विज्ञान की छात्रा रही हूँ, लेकिन कला एवं साहित्य से अपने विशेष जुड़ाव को छिपा भी नहीं पाती हूँ।
—अरुणिमा शर्मा
Rs.225.00 Rs.250.00
Weight | 0.250 kg |
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Dimensions | 8.7 × 5.57 × 1.57 in |
- : Arunima Sharma
- : 9789388131131
- : Hindi
- : Prabhat Prakashan
- : 1
- : 04/09/2021
- : 88
- : Hard Cover
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