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R.U.R

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आर यू आर यानी रोसुम युनिवर्सल रोबोज़। कारेल चापेक द्वारा सन् 1920 में लिखे गये इस नाटक में पहली बार रोबोट शब्द का इस्तेमाल किया गया। एक ऐसा यन्त्र मानव-गुलाम या दास, जो मनुष्य को उसके सब बोझिल कामों से छुटकारा दिला दे। चापेक ने यह शब्द गढ़ा चेक भाषा के शब्द रोबोटा से, जिसका अर्थ है, बेगार या बंधुआ मज़दूरों से कराया गया काम। सन् 1920 में लिखे इस नाटक में कारेल चापेक ने, जब वैज्ञानिकों को रोबोट बनाने का विचार भी नहीं आया था, कल्पना की थी कि एक फ़ैक्टरी ने रोबोट बनाने की विधि ईजाद कर ली है, उसके पास जल्दी ही हज़ारों-लाखों में दुनिया भर से ऑर्डर आने लगे हैं, और फिर रोबोट इतने बढ़ जाते हैं और बलशाली हो जाते हैं कि एक दिन मानवता के खिलाफ़ विद्रोह करके पूरी मानव जाति को ही नष्ट कर देते हैं। इस नाटक का मूल चेक भाषा से हिन्दी अनुवाद निर्मल वर्मा ने अपने चेकोस्लोवाकिया प्रवास (1959-1968) से लौट कर किया था। सन 1972 में यह अनुवाद- आर यू आर- पहली बार साहित्य अकादमी के तत्त्वाधान में प्रकाशित हुआ था।

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NIRMAL VERMA

निर्मल वर्मा (1929-2005) भारतीय मनीषा की उस उज्ज्वल परम्परा के प्रतीक-पुरुष हैं, जिनके जीवन में कर्म, चिन्तन और आस्था के बीच कोई फाँक नहीं रह जाती। कला का मर्म जीवन का सत्य बन जाता है और आस्था की चुनौती जीवन की कसौटी। ऐसा मनीषी अपने होने की कीमत देता भी है और माँगता भी। अपने जीवनकाल में गलत समझे जाना उसकी नियति है और उससे बेदाग उबर आना उसका पुरस्कार। निर्मल वर्मा के हिस्से में भी ये दोनों बखूब आये। स्वतन्त्र भारत की आरम्भिक आधी से अधिक सदी निर्मल वर्मा की लेखकीय उपस्थिति से गरिमांकित रही। वह उन थोड़े से रचनाकारों में थे जिन्होंने संवेदना की व्यक्तिगत स्पेस और उसके जागरूक वैचारिक हस्तक्षेप के बीच एक सुन्दर सन्तुलन का आदर्श प्रस्तुत किया। उनके रचनाकार का सबसे महत्त्वपूर्ण दशक, साठ का दशक, चेकोस्लोवाकिया के विदेश प्रवास में बीता। अपने लेखन में उन्होंने न केवल मनुष्य के दूसरे मनुष्यों के साथ सम्बन्धों की चीर-फाड़ की, वरन् उसकी सामाजिक, राजनैतिक भूमिका क्या हो, तेजी से बदलते जाते हमारे आधुनिक समय में एक प्राचीन संस्कृति के वाहक के रूप में उसके आदर्शों की पीठिका क्या हो, इन सब प्रश्नों का भी सामना किया। अपने जीवनकाल में निर्मल वर्मा साहित्य के लगभग सभी श्रेष्ठ सम्मानों से समादृत हुए, जिनमें साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1985), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1999), साहित्य अकादेमी महत्तर सदस्यता (2005) उल्लेखनीय हैं। भारत के राष्ट्रपति द्वारा तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्मभूषण, उन्हें सन् 2002 में दिया गया। अक्तूबर 2005 में निधन के समय निर्मल वर्मा भारत सरकार द्वारा औपचारिक रूप से नोबल पुरस्कार के लिए नामित थे।

Weight .350 kg
Dimensions 7.50 × 5.57 × 1.57 in

Author: NIRMAL VERMA
Format: Hardcover
ISBN: 9789350001653

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