Author – Sriram Mehrotra
ISBN – 9789350007563
Lang. – Hindi
Pages – 302
Binding – Hardcover
Weight | .500 kg |
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Dimensions | 7.87 × 5.51 × 1.57 in |
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‘अधिकार’ की कहानी हस्तिनापुर में पाण्डवों के शैशव से आरम्भ हो कर, वारणावत के अग्निकाण्ड पर जा कर समाप्त होती है। वस्तुतः यह खण्ड ‘अधिकारों’ की व्याख्या, अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरन्तर होने वाले षड्यन्त्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है। राजनीति में अधिकार प्राप्त करने के लिए होने वाली हिंसा तथा राजनीतिक त्रास के बोझ में दबे हुए असहाय लोगों की पीड़ा की कथा समानान्तर चलती है। सतोगुणी राजनीति तथा तमोन्मुख रजोगुणी राजनीति का अन्तर इसमें स्पष्ट होता है। एक ओर निर्लज्ज स्वार्थ और भोग तथा दूसरी ओर अनासक्त धर्म-संस्थापना का प्रयत्न। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं।
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महासमर-3 (कर्म) की कथा युधिष्ठिर के युवराज अभिषेक के पश्चात की कथा है। इस युवराज अभिषेक के पीछे मथुरा की यादव शक्ति है। अपनी राजनीति में उलझ जाने के कारण जब यादव पाण्डवों की सहायता नहीं कर पाते, दूसरी ओर गुरु द्रोण का वरदहस्त भी पाण्डवों के सिर से हट जाता है तो दुर्योधन पाण्डवों को वारणावत में भस्म करने का षड्यन्त्र रच डालता है। वारणावत से जीवित बच कर पाण्डव पांचालों की राजधानी काम्पिल्य में पहुँचते हैं। पाण्डवों का वारणावत से काम्पिल्य पहुँचाने की योजना इस कथा खण्ड का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। उन्हें हिडिम्ब वन से किसने निकाला? उनके काम्पिल्य तक सुरक्षित पहुँचने की व्यवस्था किसने की? और उन्हें काम्पिल्य ही क्यों लाया गया? इस संदर्भ में विदुर, कृष्ण तथा महर्षि व्यास के नाम लिये जाते हैं। लेखक का विचार है कि इस संदर्भ में तीनों की ही अपनी-अपनी भूमिका है। हमारे पाठक के मन में सदा से एक प्रश्न काँटे के समान चुभता रहा है कि एक स्त्री के पाँच पुरुषों के साथ विवाह कर दिये जाने के पीछे क्या तर्क था? उसका औचित्य क्या था? लेखक ने अपनी विशिष्ट, तथ्यपरक, तर्कसंगत शैली में इन प्रश्नों के समुचित उत्तर इस खण्ड में दिये हैं। पाण्डवों का हस्तिनापुर लौटना एक प्रकार का गृहआगमन भी है और मृत्यु के मुख में लौटना भी। किन्तु इस समय वे असहाय व भयभीत पाण्डव नहीं हैं और यादवों तथा पांचालों की सैन्य शक्ति उनके साथ है। यदि आज वे अपना अधिकार नहीं माँगेंगे तो कब माँगेंगे। पाण्डवों का सत्कार होता, किन्तु धृतराष्ट्र की योजना उन महावीर पाण्डवों को पुनः हस्तिनापुर से निष्कासित कर, खाण्डवप्रस्थ वन में फेंक देती है। भीष्म, विदुर, कृष्ण तथा व्यास के होते हुए भी पाण्डवों को हस्तिनापुर क्यों छोड़ना पड़ा?… ऐसे ही और सहज प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है यह उपन्यास।
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0 out of 5(0)नरेन्द्र कोहली
वेद कहते हैं कि अनस्तित्व में से अस्तित्व का जन्म नहीं होता। जो नहीं है, वह हो नहीं सकता। किसी का जन्म नहीं होता। कुछ उत्पन्न नहीं होता। स्रष्टा और सृष्टि दो समानान्तर रेखाएँ हैं, जिनका न कहीं आदि है न अन्त। वे दोनों रेखाएँ समानान्तर चलती हैं। ईश्वर नित्य क्रियाशील विधाता है। जिसकी शक्ति से प्रलयपयोधि में नित्यशः एक के बाद एक ब्रह्माण्ड का सृजन होता रहता है। वे कुछ काल तक गतिमान रहते हैं और उसके पश्चात् विनष्ट कर दिए जाते हैं। सूर्य चन्द्रमसौ धाता यथापूर्वम् अकल्पयत्। इस सूर्य और इस चन्द्रमा को भी पिछले चन्द्रमा के समान निर्मित किया गया।…तो यह जन्म लेने से पहले, इस शरीर को धारण करने से पहले भी तो कुन्ती कुछ रही होगी, कोई रही होगी। कौन थी वह ?…
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