ISBN: 9788170841104
Bound: Hard Cover
Publishing Date: 2024
Publisher: Chaukhamba Sanskrit Pratishthan
Pages: 948
Language: Sanskrit Text
Rigveda Samhita (Mul)(HB)
Rigveda Samhita (Mul) (ऋग्वेद -संहिता)
Rs.810.00 Rs.900.00
Weight | 1.700 kg |
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Dimensions | 9.5 × 7.5 × 1.57 in |
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Kahani Communisto Ki: Khand 1 (1917-1964)
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0 out of 5(0)THE AUTHOR
संदीप देवसंदीप देव मूलतः समाज शास्त्र और इतिहास के विद्यार्थी हैं | बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक (समाजशास्त्र) करने के दौरान न केवल समाजशास्त्र, बल्कि इतिहास का भी अध्ययन किया है । मानवाधिकार से परास्नातक की पढ़ाई करने के दौरान भी मानव जाति के इतिहास के अध्ययन में इनकी रुचि रही है । वीर अर्जुन, दैनिक जागरण, नईदुनिया, नेशनलदुनिया जैसे अखबारों में 15 साल के पत्रकारिता जीवन में इन्होंने लंबे समय तक क्राइम और कोर्ट की बीट कवर किया है । हिंदी की कथेतर (Non-fiction) श्रेणी में संदीप देव भारत के Best sellers लेखकों में गिने जाते हैं । इनकी अभी तक 9 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । संदीप देव भारत में Bloombury Publishing के पहले मौलिक हिंदी लेखक थे, लेकिन वैचारिक कारणों से इन्होंने Bloombury से अपनी अब तक प्रकाशित सभी पुस्तकें वापस ले ली हैं । ऐसा करने वाले वो देश के एक मात्र लेखक हैं | इसके उपरांत कपोत प्रकाशन को पुनः प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया। वर्तमान में संदीप देव हिंदी के एकमात्र लेखक हैं, जिनकी पुस्तकों ने बिक्री में लाख के आंकड़ों को पार किया है | संदीप देव indiaspeaksdaily.com के संस्थापक संपादक हैं ।
SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
The Indian War Of Independence 1857 (PB)
0 out of 5(0)Veer Savarkar was the first man who called the mutiny of 1857 ‘A War of Independence’. Until his time, no Indian had dared to say so. The martyrs of 1857 are really fortunate that they got such a historian to tell their history who himself was both a historian and a creator of history. At times, we visualise Veer Savarkar coloured in the red colour of that revolution, as if he himself was present on the battlefield and participated in the heroic war. At other times, we see him patiently analyse the strengths and weaknesses of both sides—why the mutineers lost and why the British won. The way he analyses the politico-military aspects of the revolution shows his wisdom as a youth of 26 years.
The Indian War of Independence, 1857, is a step by step account of the uprising of Indian Hindus and Muslims against the ruthless British rulers. Tracing footsteps of the barefooted, undernourished and almost unarmed Indian masses challenging the British bullets by the sheer force of their will power, the author establishes beyond an iota of doubt that the uprising was a War of Independence and not a mere Sepoy Mutiny as dubbed by the British.
Some glaring truths about this book:
• This book became the Bible for Indian revolutionaries.
• The book was proscribed by the British Government before its publication.
• The book was smuggled into India and England after it was published in Holland.
• The demand for this book was so enormous that it used to be sold and resold at the stupendous price of Rs. 300 (in 1910).SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Neeti
0 out of 5(0)Acharya Chanakya
विष्णुगुप्त चाणक्य एक असाधारण बालक थे। उनके पिता चणक एक शिक्षक थे। वह भी शिक्षक बनना चाहते थे। उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति और अर्थशात्र की शिक्षा ग्रहण की। इसके पूर्व वेद, पुराण इत्यादि वैदिक साहित्य का उन्होंने किशोर वय में ही अध्ययन कर लिया था।
उनकी कुशाग्र बुद्धि और तार्किकता से उनके साथी तथा शिक्षक भी प्रभावित थे; इसी कारण उन्हें ‘कौटिल्य’ भी कहा जाने लगा। अध्ययन पूरा करने के बाद तक्षशिला विश्वविद्यालय में ही चाणक्य अध्यापन करने लगे। इसी दौर में उत्तर भारत पर अनेक विदेशी आक्रमणकारियों की गिद्धदृष्टि पड़ी, जिनमें सेल्यूकस, सिकंदर आदि प्रमुख हैं। परंतु चाणक्य भारतवर्ष को एकीकृत देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने तक्षशिला में अध्यापन-कार्य छोड़ दिया और राष्ट्रसेवा का व्रत लेकर पाटलिपुत्र आ गए।
चाणक्य का जीवन कठोर धरातल पर अनेक विसंगतियों से जूझता हुआ आगे बढ़ा। कुछ लोग सोच सकते हैं कि उनका जीवन-दर्शन प्रतिशोध लेने की प्रेरणा देता है; लेकिन चाणक्य का प्रतिशोध निजी प्रतिशोध न होकर सार्वजनिक प्रतिशोध था। उन्होंने जनता के दुख-दर्द को देखा और स्वयं भोगा था। उसी की फरियाद लेकर वे राजा से मिले थे। घनानंद चूँकि प्रजा का हितैषी नहीं था, इसलिए चाणक्य ने उसे खत्म करने का प्रण किया।
उन्होंने ‘चाणक्य नीति’ जैसा नीतियों का एक अनमोल खजाना दुनिया को दिया, जो जीवन के सभी क्षेत्रों में हमारा मार्गदर्शन करने की क्षमता रखता है।SKU: n/a -
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