Publisher – Rajkamal Prakashan
Author – Yatish Agarwal, Rekha Agarwal
ISBN – 9788126702732
Language – Hindi
Pages – 170
Binding – Paperback
Weight | .250 kg |
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Dimensions | 7.50 × 5.57 × 1.57 in |
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Hindutva (PB)
0 out of 5(0)‘हिंदुत्व’ एक ऐसा शब्द है, जो संपूर्ण मानवजाति के लिए आज भी अपूर्व स्फूर्ति तथा चैतन्य का स्रोत बना हुआ है। इस शब्द से संबद्ध विचार, महान् ध्येय, रीति-रिवाज तथा भावनाएँ कितनी विविध तथा श्रेष्ठ हैं। ‘हिंदुत्व’ कोई सामान्य शब्द नहीं है। यह एक परंपरा है। एक इतिहास है। यह इतिहास केवल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक इतिहास नहीं है। अनेक बार ‘हिंदुत्व’ शब्द को उसी के समान किसी अन्य शब्द के समतुल्य मानकर बड़ी भूल की जाती है। वैसे यह इतिहास मात्र नहीं है, वरन् एक सर्वसंग्रही इतिहास है। ‘हिंदू धर्म’, यह शब्द ‘हिंदुत्व’ से ही उपजा उसी का एक रूप है, उसी का एक अंश है।
‘हिंदुत्व’ शब्द में एक राष्ट्र, हिंदूजाति के अस्तित्व तथा पराक्रम के सम्मिलित होने का बोध होता है। इसीलिए ‘हिंदुत्व’ शब्द का निश्चित आशय ज्ञात करने के लिए पहले हम लोगों को यह समझना आवश्यक है कि ‘हिंदू’ किसे कहते हैं। इस शब्द ने लाखों लोगों के मानस को किस प्रकार प्रभावित किया है तथा समाज के उत्तमोत्तम पुरुषों ने, शूर तथा साहसी वीरों ने इसी नाम के लिए अपनी भक्तिपूर्ण निष्ठा क्यों अर्पित की, इसका रहस्य ज्ञात करना भी आवश्यक है।
प्रखर राष्ट्रचिंतक एवं ध्येयनिष्ठ क्रांतिधर्मा वीर सावरकर की लेखनी से निःसृत ‘हिंदुत्व’ को संपूर्णता में परिभाषित करती अत्यंत चिंतनपरक एवं पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
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Satya Ke Sath Mere Prayog- Mahatma Gandhi
0 out of 5(0)सत्य के साथ मेरे प्रयोग मैं जो प्रकरण लिखने वाला हूँ, इनमें यदि पाठकों को अभिमान का भास हो, तो उन्हें अवश्य ही समझ लेना चाहिए कि मेरे शोध में खामी है और मेरी झाँकियाँ मृगजल के समान हैं। मेरे समान अनेकों का क्षय चाहे हो, पर सत्य की जय हो। अल्पात्मा को मापने के लिए हम सत्य का गज कभी छोटा न करें।
मैं चाहता हूँ कि मेरे लेखों को कोई प्रमाणभूत न समझे। यही मेरी विनती है। मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि उनमें बताए गए प्रयोगों को दृष्टांत रूप मानकर सब अपने-अपने प्रयोग यथाशक्ति और यथामति करें। मुझे विश्वास है कि इस संकुचित क्षेत्र में आत्मकथा के मेरे लेखों से बहुत कुछ मिल सकेगा; क्योंकि कहने योग्य एक भी बात मैं छिपाऊँगा नहीं। मुझे आशा है कि मैं अपने दोषों का खयाल पाठकों को पूरी तरह दे सकूँगा। मुझे सत्य के शास्त्रीय प्रयोगों का वर्णन करना है। मैं कितना भला हूँ, इसका वर्णन करने की मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है। जिस गज से स्वयं मैं अपने को मापना चाहता हूँ और जिसका उपयोग हम सबको अपने-अपने विषय में करना चाहिए।
—मोहनदास करमचंद गांधी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग हम सबको अपने आपको आँकने, मापने और अपने विकारों को दूर कर सत्य पर डटे रहने की प्रेरणा देती है।SKU: n/a -
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1857 Ka Swatantraya Samar
-10%Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)1857 Ka Swatantraya Samar
0 out of 5(0)Vinayak Damodar Savarkar
वीर सावरकर रचित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् 1909 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंत:करणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् 1857 का यथार्थ क्या है? क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था? योजना का स्वरूप क्या था? क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा? भारत की भावी पीढ़ियों के लिए 1857 का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘1857 का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!SKU: n/a -
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Meri Jeevan Yatra
0 out of 5(0)रामेश्वरम में पैदा हुए एक बालक से लेकर भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति बनने तक का डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन असाधारण संकल्प शक्ति, साहस, लगन और श्रेष्ठता की चाह की प्रेरणाप्रद कहानी है। छोटी कहानियों और पार्श्व चित्रों की इस शृंखला में डॉ. कलाम अपने अतीत के छोटे-बड़े महत्त्वपूर्ण पलों को याद करते हैं और पाठकों को बताते हैं कि उन पलों ने उन्हें किस तरह प्रेरित किया। उनके प्रारंभिक जीवन पर गहरी छाप छोड़ने वाले लोगों और तदनंतर संपर्क में आए व्यक्तियों के बारे में वे उत्साह और प्रेम के साथ बताते हैं। वे अपने पिता और ईश्वर के प्रति उनके गहरे प्रेम, माता और उनकी सहृदयता, दयालुता, उनके विचारों और दृष्टिकोणों को आकार देनेवाले अपने गुरुओं समेत सर्वाधिक निकट रहे लोगों के बारे में भी उन्होंने बड़ी आत्मीयता से बताया है। बंगाल की खाड़ी के पास स्थित छोटे से गाँव में बिताए बचपन के बारे में तथा वैज्ञानिक बनने, फिर देश का राष्ट्रपति बनने तक के सफर में आई बाधाओं, संघर्ष, उनपर विजय पाने आदि अनेक तेजस्वी बातें उन्होंने बताई हैं।
‘मेरी जीवन-यात्रा’ अतीत की यादों से भरी, बेहद निजी अनुभवों की ईमानदार कहानी है, जो जितनी असाधारण है, उतनी ही अधिक प्रेरक, आनंददायक और उत्साह से भर देनेवाली है।आभार
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