रोग तथा उनकी होम्योपैथिक चिकित्सा
Rog tatha unki Homoeopathik Chikitsa
डॉ सत्यव्रत सिद्धांतालंकार का मानना है की होम्योपैथी का आधार रोग के ‘नाम‘ न होकर रोग के ‘लक्षण‘ है। इसीलिए होम्योपैथिक चिकित्सा की पुस्तक में रोगों के लक्षण पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।
इस दृष्टि से इस ग्रंथ की अन्य ग्रंथों से विशेषता यह है कि इसमें जहां रोगों का नाम दिया गया है, वहां उनकी औषधियों का उल्लेख करते हुए उस-उस रोग में दी जाने वाली अन्य औषधियों की आपसी तुलना भी साथ-साथ की गई है।
एक ही रोग के भिन्न-भिन्न लक्षण होते हैं, इन लक्षणों की भिन्नता के कारण होम्योपैथिक औषधि भी भिन्न-भिन्न होती है। यही कारण है की इस ग्रंथ में सिर्फ रोग तथा उसकी औषधि ही नहीं दी गई है, अपितु पहले रोग का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
फिर उसके सामान्य लक्षणों पर दी जाने वाली मुख्य औषधि तथा उस औषधि के साथ-साथ उसके समान लक्षणों वाली अन्य औषधियों का उल्लेख करते हुए उनकी आपसी तुलना साथ-साथ दी गई है। ताकि एक औषधि को दूसरी से भिन्न किया जा सके।
इस ग्रंथ को लिखते हुए लेखक ने सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सकों की पुस्तकों को आधार बनाया है। इसीलिए होम्योपैथिक चिकित्सा की दृष्टि से इस ग्रंथ की एक-एक पंक्ति प्रामाणिक है।
जिस होम्योपैथ ने, जिस रोग में, जिन लक्षणों पर, जिस औषधि का, जिस शक्ति में, निर्देश दिया है, उसका उल्लेख हर जगह किया गया है। यह लेखक की 36-37 वर्षों की साधना का फल है, इसीलिए यह जिन-जिन के हाथों में पहुंचेगा वह इसका लाभ उठा सकेंगे।
Rs.375.00
Weight | .910 kg |
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Dimensions | 9.2 × 6 × 2.5 in |
AUTHOR : Prof. Satyavrat Siddhantalankar
PUBLISHER : Govindram Hasanand
LANGUAGE : Hindi
ISBN : 9788170772989
BINDING : (HB)
EDITION : 2021
PAGES : 816
SIZE : 23cms x 15cms
WEIGHT : 910 gm
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