Author – Dr. P. Jayaraman
ISBN – 9789350727317
Lang. – Hindi
Pages – 174
Binding – Hardcover
Weight | .450 kg |
---|---|
Dimensions | 9.75 × 6.50 × 1.57 in |
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युद्ध-2
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
नरेन्द्र कोहली
वेद कहते हैं कि अनस्तित्व में से अस्तित्व का जन्म नहीं होता। जो नहीं है, वह हो नहीं सकता। किसी का जन्म नहीं होता। कुछ उत्पन्न नहीं होता। स्रष्टा और सृष्टि दो समानान्तर रेखाएँ हैं, जिनका न कहीं आदि है न अन्त। वे दोनों रेखाएँ समानान्तर चलती हैं। ईश्वर नित्य क्रियाशील विधाता है। जिसकी शक्ति से प्रलयपयोधि में नित्यशः एक के बाद एक ब्रह्माण्ड का सृजन होता रहता है। वे कुछ काल तक गतिमान रहते हैं और उसके पश्चात् विनष्ट कर दिए जाते हैं। सूर्य चन्द्रमसौ धाता यथापूर्वम् अकल्पयत्। इस सूर्य और इस चन्द्रमा को भी पिछले चन्द्रमा के समान निर्मित किया गया।…तो यह जन्म लेने से पहले, इस शरीर को धारण करने से पहले भी तो कुन्ती कुछ रही होगी, कोई रही होगी। कौन थी वह ?…
नरेन्द्र कोहली
‘अधिकार’ की कहानी हस्तिनापुर में पाण्डवों के शैशव से आरम्भ हो कर, वारणावत के अग्निकाण्ड पर जा कर समाप्त होती है। वस्तुतः यह खण्ड ‘अधिकारों’ की व्याख्या, अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरन्तर होने वाले षड्यन्त्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है। राजनीति में अधिकार प्राप्त करने के लिए होने वाली हिंसा तथा राजनीतिक त्रास के बोझ में दबे हुए असहाय लोगों की पीड़ा की कथा समानान्तर चलती है। सतोगुणी राजनीति तथा तमोन्मुख रजोगुणी राजनीति का अन्तर इसमें स्पष्ट होता है। एक ओर निर्लज्ज स्वार्थ और भोग तथा दूसरी ओर अनासक्त धर्म-संस्थापना का प्रयत्न। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं।
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