An authentic commentary by a vedic scholar.
Shrimad Bhagavad Gita – श्रीमद्भगवद्गीता
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‘श्रीमद्भगवद्गीता‘ का समर्पण भाष्य मौलिक विवेचना की दृष्टि से उल्लेखनीय है। यह विषुद्ध सिद्धान्तों पर आधारित है। इसमें कर्म सिद्धान्त पर बहुत ही चमत्कारिक और विद्वत्तापूर्ण ढंग से प्रकाष डाला गया है। गीता में कई स्थानों पर ऐसे श्लोक हैं जो मृतक श्राद्ध, अवतारवाद, वेद-निंदा आदि सिद्धान्तों के पोषक प्रतीत होते हैं।
इस पुस्तक में पं. बुद्धदेव जी ने ‘‘तदात्मानं सृजाम्यहं‘‘ का बड़ा सटीक, वैदिर्क िसद्धान्तों के अनुरुप और बिना खींच-तान किए अर्थ किया है कि ‘‘मुझसे योगी, विद्वान् परोपकारी, धर्मात्मा आप्त जन जन्म लेते हैं। सभी अध्यायों के समस्त प्रकरणों में स्थान-स्थान पर, गीता के श्लोकों का अर्थ वैदिक सिद्धान्तों के अनुरुप दिखाई देता है।
श्रीमद्भगवद्गीता के उपलब्ध भाष्यों तथा इस समर्पण भाष्य में महान् मौलिक मत भेद हैं। जहां अन्य भाष्यों में श्री कृष्ण को भगवान्, परमात्मा के रूप में दर्षाया है। वहां इस भाष्य में उन्हीं कृष्ण को योगेष्वर एवं सच्चे हितसाधक सखा रूप में दर्षाया है। यही कारण है गीता के आर्य समाजीकरण का। यह उनके निरन्तर चिंतन और प्रज्ञा-वैषारद्य का द्योतक है।
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Weight | .425 kg |
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Dimensions | 8.6 × 5.51 × 1.57 in |
AUTHOR : Swami Samarpananand
PUBLISHER : Govindram Hasanand
LANGUAGE : Hindi
ISBN : 9788170771951
BINDING : Paperback
EDITION : 2021
PAGES : 342
SIZE : 21cms x 13cms
WEIGHT : 425 gm
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