Author- SURYAKANT TRIPATHI ‘NIRALA’
ISBN – 9352293908
Language – Hindi
Pages – 152
SMARAN MIAN HAI AAJ JEEVAN
स्मरण में है आज जीवन अस्वस्थता के दिनों में एक बार हितैषियों की इस माँग पर कि उन्हें आत्मकथा लिखनी चाहिए, निराला ने यह कहा कि मैं अपने बारे में सब कुछ लिख चुका हूँ, मेरा साहित्य पढ़िए। वास्तव में निराला ने अपने साहित्य में ही अपने जीवन का बहुत कुछ शामिल किया है। उनकी प्रसिद्ध लम्बी कविताओं की तो कुछ विद्वानों ने उस तरह से व्याख्या भी की है। निराला की उनके गद्य-साहित्य में बार-बार जो जीवन आता है, जो चरित्र कविताओं आते हैं, निराला और उनके परिवेश में उनकी पहचान संभव है। असल में निराला ने अपनी अनुभूति की ही अपने साहित्य में ढाला। अपने समय, अपने परिवेश से यही संवाद निराला-साहित्य को छायावाद-युग में विशिष्टता प्रदान करता है। इस पुस्तक में निराला की कुछ ऐसी गद्य-रचनाएँ शामिल की गयी हैं, जो उन्होंने समय-समय पर अपने परिवेश, अपने आस-पड़ोस, अपने जीवन पर पर लिखीं। कुछ मिलाकर ये रचनाएँ एक ऐसी चौहदी बनाती हैं कि न सिर्फ़ निराला के जीवन, बल्कि काफ़ी कुछ उनके साहित्य, उनकी रचना-प्रक्रिया को समझने में भी आसानी होती है। हालाँकि निराला के साहित्य की ही तरह, उनके जीवन में भी इतनी विविधताएँ थीं कि उसका पूरी तरह आकलन कर पाना या उसकी कोई व्यवस्था बनाना संभव नहीं है। बल्कि निराला की विशेषता ही यही है कि वह हर चौहदी को तोड़ती प्रतीत होती है। तो भी इस पुस्तक से इतना तो है कि महाप्राण निराला के जीवन के विविध पक्षों की एक झाँकी सी यह पुस्तक बनाती है। यही इस पुस्तक की सफलता है और उपलब्धि भी। निराला ने गद्य को। ‘जीवन-संग्राम की भाषा’ कहा था जोकि इस पुस्तक को। पढ़ते हुए बार-बार स्मरण आता है।
Rs.200.00
Weight | .240 kg |
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