तिब्बत का रहस्यमयी योग व अलौकिक ज्ञानगंज
Tibbat Ka Rahasyamayi Yog wa Alaukik Gyanganj
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बौद्ध इस स्थान को ‘शम्भाला’ कहते हैं। तिब्बत के लामाओं द्वारा निदेर्शित / संचालित सामान्य मानवीय ज्ञान, अनुभव, तर्क, समझ से परे भावातीत, लोकोत्तर इस शान्तिदायक घाटी को पश्चिम में ‘शांग्री-ला’ के नाम से जाना जाता है। भारतीयों के लिए यह ज्ञानपीठ ‘ज्ञानगंज’ है-अनश्वर, शाश्वत, अमर सत्ता (लोगों) की रहस्मयात्मक, अद्भुत, आश्चर्यजनक आध्यात्मिक दुनिया।
श्रीमत् शंकर स्वामीजी द्वारा प्रस्तुत यह पुस्तक अपने आप में अतुलनीय, अनुपम, अद्वितीय है क्योंकि आज तक अनेकानेक आध्यात्मिक महात्माओं ने इस अद्भुत स्थान का भ्रमण किया है किन्तु किसी ने भी अपने भ्रमणोपरान्त अनुभव के आधार पर ऐसा विलक्षण यात्रावृत्तान्त नहीं लिखा जैसा श्रीमत् शंकर स्वामी जी ने लिखकर इस पुस्तक के रूप प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक ‘ज्ञानगंज’ व तत्सम्बन्धी योग पर जिज्ञासु पाठकों की अतृप्त जिज्ञासा को किंचित् शान्त कर सकेगी।
‘अलौकिक’, इस शब्द का अर्थ तो बहुत से लोग जानते होंगे, लेकिन ऐसे लोग बिरले ही होंगे, जिन्होंने इसे अनुभव किया हो। इस जगत् में ऐसे व्यक्तियों की संख्या भी कम होगी, जो अलौकिक शब्द की गूढ़ता और उसके रहस्य को अनुभव न करना चाहते हो। उत्तराखण्ड के वारणावत शिखरधाम स्थित आश्रम के महाराज श्रीमत् शंकर स्वामी महाराज ने अपनी इस पुस्तक में कई बार इस बात का उल्लेख किया है कि उन्होंने अस्वाभाविक परिस्थितयों में अपनी चेतना को विलुप्त होता पाया। चेतना तभी लौटी, जब वे उन परिस्थितयों से बाहर आ चुके थे। अपने साथ घटित घटनाओं को जब उन्होंने शब्दों में पिरोना शुरू किया तो उनके अन्तर्मन के वे भाव भी मानों साकार होते चले गये, जिन्हें उन्होंने ज्ञानपीठ ज्ञानगंज की सम्पूर्ण यात्रा के दौरान अनुभव किया था। यही वजह है कि शान्त और गहन वातावरण में गम्भीरतापूर्वक इस पुस्तक का अध्ययन करने पर हमारे अन्तर्मन में वे शब्द उतरने लगते है और उनमें निहित अलौकिकता का आभास दे जाते है।
जो भी व्यक्ति अलौकिक जगत् के प्रभाव, उनके एहसास का अनुभव करना चाहते है, उन्हें श्रीमत् शंकर महाराज की इस पुस्तक का अध्ययन, मनन-चिन्तन अवश्य करना चाहिए। महाराज ने वही लिखा है, जो उनके साथ घटित हुआ है, जिसे उन्होंने अनुभव किया है, यही कारण है कि उनका लेखन पढ़ने के दौरान हमारी आँखों के सामने चलचित्र सा दिखलाई पड़ता है। लगता है कि हम पुस्तक नहीं पढ़ रहे हैं, पुस्तक में वर्णित घटनाओं में प्रवेश कर रहे हैं।
यह ग्रन्थ स्वनामधन्य शंकर स्वामी की तिब्बत यात्रा का एक आभास मात्र कहा जा सकता है। उनकी यह यात्रा ऐसी अलौकिक तथा रहस्यमयी रही है, जिस पर सामान्य बुद्धि हठात् विश्वास नहीं कर सकती, तथापि जो तत्त्ववेत्ता हैं तथा रहस्यमयी घटनाओं से दो-चार हो चुके है, उनकी विमल प्रज्ञा में ऐसी घटनायें प्रकृति की ही एक लीला के रूप में मान्य एवं विश्वस्त रूप से प्रकट होती रहती है। उनको इस सम्बन्ध में कोई आश्चर्य तथा संशय का तनिक भी आभास नहीं होता। युग-युगान्तर से यह सब होता चला आया है, आगे भी होता रहेगा। प्रकृति की अनन्त क्रीड़ा में प्रतिक्षण ऐसे विस्मय तथा आश्चर्य का उन्मेष होता रहता है। इनको संशयात्मक दृष्टिकोण से न देख कर अनुसंधान तथा विज्ञान के अन्वेषक के रूप में देखना उचित होगा।
प्रस्तुत पुस्तक में तिब्बत के रहस्यमय मठ ज्ञानगंज का वर्णन है। इस सम्बन्ध में किंचित् प्रकाश प्रक्षेपण मैंने अपने ग्रन्थ ‘रहस्मयमय सिद्धभूमि तथा सूर्यविज्ञान’ में किया था, तथापि वह सुनी-सुनाई तथा यत्र-तत्र से संकलित बातों पर आधारित था। यह पुस्तक पूर्णत: ‘आंखिन की देखी’ पर आधारित यथार्थपरक है। इस ज्ञानगंज के सम्बन्ध में पूज्य गुरुदेव महामहोपाध्याय डा. गोपीनाथ जी कविराज से मैंने सुना था।
पूज्य स्वामी जी द्वारा वर्णित ज्ञानगंज कोई कपोल कल्पना नहीं है। वह यथार्थ तथा प्रामाणिक स्थल है, जिसका प्रत्यक्ष दर्शन करके पूज्य स्वामीजी ने इस पुस्तक के रूप में वहाँ का घटनाक्रम जनसाधारण हेतु प्रस्तुति किया है। यह श्लाघनीय प्रयत्न स्तुत्य भी है।
Rs.140.00
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Weight | .200 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
AUTHOR : Shrimat Shankar Swami
PUBLISHER : Vishwavidyalaya Prakashan
LANGUAGE : Hindi
ISBN : 9789387643109
BINDING : (PB)
PAGES : 112
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