आरती संग्रह |
PUBLISHER- Manoj Publication
LANGUAGE – Hindi
आरती संग्रह |
PUBLISHER- Manoj Publication
LANGUAGE – Hindi
Weight | 0.150 kg |
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Dimensions | 5.6 × 5 × 1 in |
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यह आम धारणा है कि सरदार पटेल कांग्रेस के तीन दिग्गजों-महात्मा गांधी, पं. नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के खिलाफ थे। किंतु यह मात्र दुष्प्रचार ही है। हाँ कुछ मामलों में-खासकर सामरिक नीति के मामलों में-उनके बीच कुछ मतभेद जरूर थे, पर मनभेद नहीं था। परंतु जैसा कि इस पुस्तक में उद्घाटित किया गया है, सरदार पटेल ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिए जाने के प्रस्ताव पर गांधीजी का विरोध नहीं किया था; यद्यपि वह समझ गए थे कि ऐसा करने की कीमत चुकानी पड़ेगी। इसी तरह उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में पं. नेहरू के प्रति भी उपयुक्त सम्मान प्रदर्शित किया। उन्होंने ही भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में शामिल करने के लिए पं. नेहरू को तैयार किया था; यद्यपि नेहरू पूरी तरह इसके पक्ष में नहीं थे। जहाँ तक सुभाष चंद्र बोस के साथ उनके संबंधों की बात है, वे सन् 1939 में दूसरी बार सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने के खिलाफ थे। सुभाषचंद्र बोस ने जिस प्रकार सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल-जिनका विएना में निधन हो गया था-के अंतिम संस्कार में मदद की थी, उससे दोनों के मध्य आपसी प्रेम और सम्मान की भावना का पता चलता है।
अपने समय के चार दिग्गजों के परस्पर संबंधों और विचारों की झलक देती महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अलौकिक है। उसमें अदम्य साहस और नेतृत्व के विरले गुण अभिव्यक्त होते हैं। वर्तमान समय में यह महान् व्यक्तित्व और भी सामयिक हो चला है। शिवाजी के स्वराज्य की संकल्पना के मूल तत्त्व यदि आज लागू किए जाएँ तो भारत निस्संदेह विश्व के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच सकता है।
‘छत्रपति शिवाजी : विधाता हिंदवी स्वराज्य का’ लिखने का मुख्य उद्देश्य महान् शिवाजी के जीवन-मूल्यों को युवा पीढ़ी से परिचित करवाना और वरिष्ठजनों के लिए उस स्वर्णिम कालखंड की स्मृति ताजा करना है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य एवं साहस से परिपूर्ण तेजस्वी जीवन का विहंगम दिग्दर्शन कराती सबके लिए पठनीय कृति।
Give me blood and I’ll give you freedom’, declared Subhash Chandra Bose. This was exactly what he believed in. The moderate ways of the Congress were not for him. Therefore, he formed the Azad Hind Fauj to overthrow the British. Burning with patriotic zeal, he tried his best to oust the British from his motherland. He was respectfully addressed as ‘Netaji’ and he dedicated his entire life for the freedom of his country.
The annals of history have not done justice to this great patriot. It is time that he should be known by the people of India and given his due recognition.
This book attempts to bring his life into spotlight and illuminate it so that the reader is conversant with it and appreciates his efforts.
सुभाष को यकीन था कि वे और जवाहरलाल साथ मिलकर इतिहास बना सकते हैं, मगर जवाहरलाल अपना भविष्य गांधी के बगैर नहीं देख पा रहे थे।
यही इन दोनों के संबंधों के द्वंद्व का सीमा-बिंदु था।
एक व्यक्ति, जिसके लिए भारत की आजादी से अधिक और कुछ मायने नहीं रखता था और दूसरा, जिसने अपने देश की आजादी को अपने हृदय में सँजोए रखा, मगर इसके लिए अपने पराक्रमपूर्ण प्रयास को अन्य चीजों से भी संबंधित रखा और कभी-कभी तो द्वंद्व-युक्त निष्ठा से भी।
सुभाष और जवाहरलाल की मित्रता में लक्ष्यों की प्रतिद्वंद्विता की इस दरार ने एक तनाव उत्पन्न कर दिया और उनके जीवन का कभी भी मिलन न हो सका।
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